कोयतोरक दिवाड़
तिरुमाल नारायण मरकाम आजो के कलम से साभार
देव + वारी
पेन +वारी
गौरा + गौरी
शम्भू + गौरा
दिव् + वाड़
दिय् + आड़
प्राकृतिक संसाधनों के सन्तुलित उपभोग को संतुलित करने के व शम्भू शेक व सैकड़ों गणकों के एक साथ " पेन" "वारी" बनने के इस महान त्योहार जिसके प्राकृतिक पारम्परिक स्वरूप विश्व भर में प्रचलित था . जिसे दुनिया 🌍 "दिवाड़" के नाम से या "देव वारी " के नाम से जानती थी . . इस महान त्योहार को बाह्य आक्रमणकारियों के द्वारा छलकपट से " दिपावली " नाम कर "दीप- फटाखों" का त्योहार बनाकर आडम्बरों से लैस कर दिया गया. . . . महान "कोंदाल " ( बैल 🐂 ) जिन्होंने पृथ्वी के मानव विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. . . . के "जेठा सम्मान" दिवस की जगह " धन"(लक्ष्मी )" के "लोभ" "लालच" को प्रवेसित कराया गया, . .इस महान " कोंदाल " के परिपालको. "कोपाल"(राऊत/यादव) के कृतज्ञता व सेवा को . . . . . " जुआ और जुआरियों " से भरी " घृणित धन लोलुपताओं के निशा में तब्दील किया गया. . . . . शम्भू शेक के
शान्तिपूर्ण "पेन पयाना कार्यक्रम " की जगह "फटाखों के हुड़दंग " को शामिल कर दुषित किया गया . . . "सेला-सिलयारी" की प्राकृतिक सजावट की जगह . . . प्लास्टिक इलेक्ट्रिक के बर्बादी दिखावे का अम्बार लगाया गया . . . ईमली ,झुनगा , कुम्हड़ा, कांदा , कोचई के प्रकृति संतुलन सेवा चक्र को इन्होंने "आडम्बरों व दान दक्षिणा का चक्रव्यूह " बना डाला . . .
. . . . यदि दुनिया 🌍 को "दिवाड़ " पेन वारी" के वास्तविक स्वरूप को समझना है तो शम्भू शेक के प्रिय वाद्ययंत्र "हुल्कि " के संगीतमय "थाप " और " दिवाड़ " नृत्य अभियान को भी समझना होगा. . . . . . . इसलिए प्रकृति सेवा में लगे मेरे प्यारे साथियों
. . . . फटाखों के प्रदुषण
जुआरियों के लालच
शराबियों के हुड़दंग
दिखावे का आडम्बर . . . .
. . . . . . . . . . छोड़ . . करो. . .
"जेठा - सुहई"
"खिचड़ी -रोटी "
" सेला-सिलयारी"
"दिवाड़- हुल्कि "
" शंभू- गंवरा " के मान
"कोंदाल-कोपाल" के सम्मान
और प्रकृति सेवा! के "आस"
में जय सेवा! को करो बखान ।
. . . ताकि . . गोण्डव
जेठा - सुहई"
"खिचड़ी -रोटी "
" सेला-सिलयारी"
"दिवाड़- हुल्कि "
" शंभू- गंवरा " के मान
"कोंदाल-कोपाल" के सम्मान
और प्रकृति सेवा! के "आस"
में जय सेवा! को करो बखान ।
. . . ताकि . . गोण्डवाना रहे हरदम महान ।।
. . .ताकि. . कोया पुनेम रहे हरदम पल्लवित ।
. . . ताकि. . मानवता रहे हरदम सुरक्षित ।। . . . . . .( क्रमश : )
जय सेवा! प्रकृति सेवा!मानव सेवा!
नारायण मरकाम
( शोधार्थी लिंगो हुय्मन मेट्रिक्स एण्ड
इनवार्नमेन्ट केबीकेएस )
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें