पटवेंन मुदिया कुंजाम गोत्र का मंडापेन
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पटवेंज पेन
(कुंजाम गोत्र)
मंडा- होनहेड़ / पलेवा
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गोत्र
पटवेंज मुदिया के गढ़ में १४ मंडा और ७ मानेय हैं ये सात मानेय निम्नलिखित हैं -
१. आकी कुंजाम २. कसूर कुंजाम ३. राउड़ कुंजाम ४. बटकी कुंजाम ५.पालो कुंजाम ६. गांयता कुंजाम ७. सिरहा / पुजारी कुंजाम ( टोटम चिन्ह नाग एवं बकरा है)
पहुंच मार्ग :-
होनहेड़ जो पटवेंज मुदिया का जागा है वहाँ पहुंचने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग ३० पर केशकाल से ३ किलोमीटर आगे बटराली नामक गांव है वहाँ से पश्चिम में गोबराहीन नामक गाँव है जहाँ से आगे रांधा गांव है इसी गाँव के आगे घने जंगलों को पार कर होनहेड़ पहुंच सकते हैं । रास्ता दुर्गम है ।
कुंजाम गोत्र का इतिहास
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पटवेंज मुदिया के पिता बुम मुदिया को माना जाता है। उसकी मां दूधनागिन है। इन्हें भी लिंगो के भाइयों में गिना जाता है। इनका अवा बाबो का पेन गदिया बेड़मामारी में मानते हैं । बुम मुदिया के पुझारक. कोरेटी गोत्र के लोग हैं । पटवेंज मुदिया का जन्म सुरडोंगर में हुआ था नाभी को गाड़ने के लिए जो गढ़ा खोदकर नाभि डाला गया वह आज सुरडोंगर में तालाब है। उसका छट्टी सुरडोंगर में ही हुआ ।जब भंगाराम माइ को केशकाल में स्थान दिया गया तब वे सुरडोंगर छोड़कर कुकड़ादाह चले गये ।यह गाँव घाटी के नीचे स्थिति है। हलाल कुंजाम कुकड़ादाह के अनुसार चिंगनार गांव के नेताम जो बाप बेटे काम की तलाश में कोरकोटी गाँव पहुंचे और मजदूरी करके जीवन यापन करने लगे । एक परचापी गोत्र का संपन्न किसान उनके पास आया और उसने बेटे को गाय बकरी चराने के लिए मांग लिया । बाप बहुत गरीब था इसलिये बच्चे को स्वीकृति दे दी और जाते-जाते बेटे को एक टंगिया और तुरही दी जो वे चिंगनार से लाये थे । बेटा परचापी के घर कार्य करने लगा, उसके पास ये दोनों चीज सदैव होती थी ।एक बार नेताम कमिया को शिकार पर चलने को कहा तब वे बहुत. जानवरों का शिकार किये, परन्तु जब परचापी अकेले जाते थे तब कोई शिकार नहीं मिलता था । कई बार नयताम कमिया उन दो चीजों के बगैर गये तब भी कोई शिकार नहीं मिली । तब परचापी ने सोचा कि यह तो मेरा कमिया (नौकर) है इससे यह वस्तुएं छीना जा सकता है। परचापी ने तुरही टंगिया को छीनकर नयताम कमिया को घर से भगा दिया । जिस दिन से परचापी उक्त सामग्री छीनकर भगा दिया उसी दिन से उसके परिवार में बुरे दिन शुरु हो गये ।परिवार में सदस्यों की असामयिक मौत,बीमारी व गाय-बैल.भी एक-एक कर मरने लगे । तब परचापी ने सिरहा बुलाकर जांच करवाया तो सिरहा ने बताया कि जो पेन नयताम का है उसे छीन कर घर में रखे हो वही तुम्हें प्रताड़ित कर रहा है। इसे गांव सीमा से दुर निकाल कर रवाना कर दो ताकि वापस न आ सके । परचापी तत्काल. उसे कांकेर राज के सिदेसर गाँव की पहाड़ी पर छोड़ आया । जब से तुरही व टंगिया सिदेसर गाँव में छोड़ा गया तब से उस गाँव. में शेर का आतंक बड़ गया ।कभी जानवर. तो कभी मनुष्यों को शिकार करता था लोगों का जीना दूभर हो गया । जानवर एवं मनुष्यों के अधखाये मांस जंगल में बिखरे होते किंतु गिद्ध उसी स्थान पर उतरते जहाँ टंगिया व तुरही रखी हुई थी। कांकेर. राजा को इस समस्या से अवगत कराया गया यह आतंक दोनों राज की सीमाओं में बढ़ गयाथा। एक केसलू नाम के व्यक्ति का भी भक्षण शेर ने केशकाल में किया तब वहां जंगल हुआ करता था।केशलू का काल इस स्थान में होने के कारण ही इसे केसलूकाल कहा जाने लगा जो कालांतर में केशकाल हो गया ।
कांकेर राजा ने पता लगवाया कि इस समस्या का समाधान कैसे किया जाये? ? राजा को प्रमुख लोगों ने सलाह दी कि यह काम पटवेंज ही कर सकता है। सो राजा ने पटवेंज से बिनती की। पटवेंज सिदेसर की पहाड़ी में गये और उस पेन को मनाकर अपने साथ ले आये।और अपनी बेटी के लिए लमसेना रख लिया। तब से वह अपने ससुर के साथ होनहेड़ में रहने लगा।लमसेना को नयताम लोग सेवा करते हैं ।हीरावृक्ष की लकड़ी से आंगा बनाकर उसे मुरवेण्ड में स्थापित किया गया है। पटवेंज के इस कार्य से प्रसन्न होकर कांकेर राजा ने उसे ग्राम पलेवा को इनाम में दिया ।इसके बाद वे कुकड़ादाह छोड़कर होनहेड़ निवास करने लगे ।पलेवा के कुंजाम लोगों ने पलेवा में भी पेन का प्रतिरूप बनाकर स्थापित किये हैं ।
संदर्भ : तिरुमाय डाक्टर किरण नुरुटी के किताब "बस्तर के गोंड जनजाति की धार्मिक (पेनकरण) अवधारणा से । संदर्भित आलेख।
📝📝📝 संकलन:माखन लाल सोरी "होड़ी " बस्तर ॥
जय सेवा
पटवेंज मुदिया ना सेवा-सेवा ।
🙏🙏🙏
Dhanywad sewa johar🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंDomendra kunjam
जवाब देंहटाएंJai sewa
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद दादा सेवा जोहार🙏🙏
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