मुंद शूल हर्रि
तिरुमाल नारायण मरकाम आजो के कलम से
गोण्डी पुनेम /कोया पुनेम /सरना पुनेम / आदिवासीयो के मोनो में निहित तत्व व मूदं शूल सर्री
दरअसल यह ब्रहमाण्ड के मूल नियमों को परिभाषित करता हुआ यह "पूनेम प्रतिक " उन समुदायों को जो प्रकृति सेवा व नियमों से संचालित होते हैं. .प्रतिनिधित्व करता है. . . मोनो को सूर्य (पोड़द ) 🌞 चन्द्र (नलेंज ), पृथ्वी (भूम ) , व तारों (मिड़कम) आकाश (बुम) को संयोजित कर बनाया गया है.(मोनो कार मध्य भाग ) . . . पृथ्वी पर मानव व जीवन की सम्भावनाओं को सूर्य चन्द्र तारों की गतिया निर्देशित करते हैं . . . . प्रकृति के पोषण के लिए सूर्य के प्रकाश का सन्तुलित होना अतिआवश्यक है. . . . मूदं शूल सर्री (तीन गतियो/कांटे का मार्ग ) को प्रकृति के हर जीव व वनस्पति प्रदर्शित करते हैं. . . वहीं फिजिक्स के बेसिक थ्योरी व प्रत्येक मेथेमेटिकल संगणनाऐ इन्हीं प्लस ➕ माईन्स ➖ एण्ड जीरो (0) थ्योरी पर टीकी हुई है. . . . वहीं विश्व के प्रत्येक कण अपने सतत् विभेदन के बाद भी लगातार इलेक्ट्रान -प्रोट्रान -न्यूट्रान के आगे भी इन तीन तरह के स्वतंत्र सुक्ष्म कणों के व्यवहार को आधुनिक वैज्ञानिक "बोसान" कणों के रूप में नये खोजों में पा रहे हैं. . . . . सल्ला गागरा के इस पवित्र मोनो में " प्रकाश " के तीन तरह के व्यवहार से ही प्रकृति चक्र किसी ग्रह 🌎 में संचारित हो सकता है व यूनिवर्स के करोड़ों रंगों को प्रकाश के तीन प्राथमिक रंगों से ही निर्मित कर सकते हैं. . . . आदिवासी समुदायों को परिभाषित करता यह मोनो उनके मूल व्यवहार कि "अपने दादा के दादा के द्वारा अर्जित ज्ञान को अपने वर्तमान समुदाय में प्रयुक्त करते हुए . . . . प्राकृतिक संसाधनों को अपने आने वाली पीढ़ियों नाती के नाती के लिए सुरक्षित रखने" के मूलभूत सिध्दांत को भी इगिंत करता है. . . . दरअसल इस पृथ्वी पर " धर्मों " के आगमन के बाद ही मानवता में " आडम्बरों" "मठाधीशवाद" का बीज अंकुरित हुआ है. . जो कि पुरी दुनिया के लिए घातक है. . . . जबकि कोया पुनेम या आदिवासीयो के प्रकृति मार्ग "सामुहिकता में ही खुशी " तलाशने के तकनीकी के कारण "जैव विविधता " को ज्यादा पल्लवित करते जाता है. . . जिससे इस हजोरपेन के प्रतिक इस मोनो का सन्देश है कि "प्रकृति खुश रहेगी तभी तो मानवता खुश रहेगी" है . . . . इस मोनो को मानव जीव विज्ञान में सल्ला गागरा याने मातृ और पुरूष शक्ति के संयोजन द्वारा ही नऐ जीव का निर्माण होता है. .. . इस कारण "सल्ला गागरा मोद वेरची " . . . . . . . . . . . क्रमश :. . . . . .
नारायण मरकाम ( शोधार्थी केबीकेएस )
. जय सेवा! प्रकृति सेवा! जय हजोरपेन! जय आदिवासी!
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