हजोरपेन व बुढालपेन
आइये जानते हैं बड़ादेव व बुढ़ादेव कौन हैं :-
बड़ादेव - प्रकृति शक्ति ( धरती ,आकाश, जल, वायु, अग्नि) जो सर्वोच्च शक्ति है और सत्य है । यह सार्वभौमिक सत्य शक्ति ही बड़ादेव है।यह प्रकृति के सृजनकर्ता एवं संचालक हैं । बड़ादेव जिसे गोण्डवाना (कोया पुनेम) में जिसे सल्ला गांगरा कहते हैं । सल्ला गांगरा अर्थात् नर और मादा । अर्थात् उत्पन्न होने की शक्ति धन और ऋण आयन जो कि उपरोक्त पांच घटकों से बनता है। इन शक्ति के बिना पृथ्वी में किसी भी जीव की उत्पति संभव नहीं है। इसे होजोरपेन, सजोरपेन, फड़ापेन परसापेन भी कहते हैं । इस पेन को सभी गोत्र के गोण्ड या अन्य गण भी अन्य नामों से मानते जानते हैं ।
बुढ़ादेव - यह पेन किसी गोत्र या परिवार या किसी परगना या मुड़ा या जागा का होता है। यह पेन संबंधित समूह के पूर्वज ही होते हैं जो मृत्यु उपरान्त संबंधित परिवार के सदस्य को साक्षात् जनाते हैं उसके बाद अपनी शक्ति से संबंधित समूह को प्रमाण देते हैं के उपरान्त उस शक्ति को पेन पन्डना क्रिया से जगाया जाता है। पंच पेन की उपस्थिति में स्वयं को साबित करते हैं तब संबंधित परिवार या समूह के सदस्यों द्वारा संबंधित बुढालपेन / बुढ़ीपेन / डोकरादेव / बुढालपेन को आत्मसात किया जाता है। यह पेन एक सीमित समूह तक में ही प्रभावी होता है। यह पेन सभी गोण्ड गोत्र / जागा / परिवार में अलग-अलग हो सकते हैं । इन पेनों की शक्ति बड़ादेव से नियंत्रित व शासित होते हैं । यह पेन संबंधित परिवार की टण्डा मण्डा कुण्डा की समुचित रक्षा एवं मार्गदर्शक के रुप में महत्वपूर्ण योगदान रहता है। बुढ़ापेन के द्वारा ही गोण्ड परिवार / समाज की जन्म,विवाह एवं मृत्यु बाना नियंत्रित एवं आयोजित होते हैं । परिवार में किसी भी तरह से बाना/ बानी के विपरीत कार्य होने पर उनके पुझारी लोगों को यह पेन विशेष निर्देश व राह दिखाते हैं । बुढालपेन गोण्ड परिवार के सभी तिहारो में प्रमुख रुप से सेवा अर्जि किये जाते हैं । इन पेनों के कारण ही गोण्ड समाज प्रकृति समयक बना हुआ है।
बुढालपेन गोण्ड समाज के प्रत्येक गोत्र के गढ़, मण्डा व जागा में स्थापित हैं । इन व्यवस्थाओं की संरचना हमारी पुरानी शासन पद्धति " परगना पद्धति " के अनुसार ही शासित होते हैं । बुढालपेन की जीवनचक्र एक गोण्ड व्यक्ति के जीवनचक्र से पूर्णतः समानान्तर चलता है। बुढ़ालपेन विभिन्न रुपों में आरुढ़ होती हैं विशेषकर आंगापेन ,डांग, डोली, भाला, बेरछी ,बेंत, टंगिया, भरमार , तीर-कमान, छुरी , मंजूर मूठा, गप्पा, तेंदू खटला प्रमुख हैं । सभी बुढालपेन के पुझारी एवं सिरहा होते हैं । बुढालपेन अपनी संदेश या खबर पुझारी / सिरहा के माध्यम से ही देते हैं । सभी बुढालपेन का सेवा विधि अलग-अलग या कुछ का समान भी होता है। बुढालपेन की प्रकृति भिन्न- भिन्न होता है। इनकी प्रखरता व सिद्धता भी अलग-अलग क्षेत्रों में हो सकती है।
✒✒✒
माखन लाल सोरी " होड़ी" बस्तर ॥
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें