श्रम सहकार व्यवस्था व अन्य जातियाँ

गोंडवाना लेण्ड जो अति प्राचीन है । इस दौरान जो कोयतुर लेण्ड में जो #श्रमसहकार व्यवस्था आपस में थी वह कुशल श्रमिकता अर्थात् #विशेषज्ञता पर आधारित थी ।यह  भेदभाव पर आधारित नही थी । यह व्यवस्था #वस्तु / #श्रम विनिमय पर आधारित थी । इसका मूल्यांकन #मांझी_मुखिया_गायता की उपस्थिति में समस्त ग्रामवासियों की सहमति पर निर्धारित किया जाता था जो कि आज भी कोयतुर गाँव में तथापि संचालित है। अब थोड़ा विश्लेषण पर चलते हैं गोण्डवाना लेण्ड की प्रचलित भाषा ही #कुई अर्थात् #गोण्डी अर्थात् #कोयतुरीन भाषा है । मैं पहले से ही इस विषय पर बल देते आया हूं कि गोंडवाना लेण्ड की  अधिकांश प्राचीन गांव / कसबा या समूह या कर्म या पुरखा( पेनक)  या व्यवसाय अति प्राचीन #कुई अर्थात् कोयतोरक भाषा अर्थात् गोण्डी भाषा के शब्दों के अनुसार ही है। यह सर्व विदित है कि भाषा किसी भी क्षेत्र या देश की #इतिहास की प्रथम #कड़ी होती है। जो मौजूद हो । इसी क्रम में अब हम देखते हैं कि गोंडवाना द्वीप में #श्रमसहकार की जो पद्धति प्रचलित थी/ है के तहत जो आर्यों के अतिक्रमण के बाद जो जातियों में जाने जानी लगी हैं वे निम्न हैं
जैसे
#कलार,  #लोहार, #राउत, #मरार  ....अन्य
इन जातियों की गोण्डी भाषा में  विश्लेषण किया जा सकता है जो निम्न है
कलार - कल + अहार
लोहार - लौ + अहार
राउत -राव + ऊत
मरार - मर्र + हार
अब क्रम से चलते हैं गोण्डी में  अर्थ
कल - मंद अर्थात् महुआ का आसवित रस ना कि शराब
#कल का गोण्डी में मतलब पत्थर जैसे ठोस पदार्थ से झर कर बहने वाली द्रव्य ही कल है अर्थात पानी मतलब #कल बनाने की विधी इसमें सप्रासांगिक है।

अहार - जो आहरित करता हो
वैसे ही लोहार ,मरार
राउत
राव ( गोण्डी) + उत
राव मतलब गांव नार्र का रक्षा करने वाला ₹पेन मतलब पुरखा जिसे बाद में #रावण के नाम से बदनाम किये

उत(गोण्डी) - विशेषज्ञता से  सीमा लांघना अर्थात् गाँव की सीमा से बाहर भी गाय चराने की विशेष क्षमता वाला समूह

उपरोक्त गोण्डी भाषा के विश्लेषण के अनुसार कल अर्थात् #मंद अर्थात् इरुह पुंगार रस के आहरित करने वाले ही उनका नाम #कलार ,  लोहा का आहरित करने वाले #लोहार
कहलाये
वहीं राउत व मरार भी श्रमसहकार प्रबंधन के हिस्सेदार रहे हैं ।

इन श्रमसहकार समूह के बगैर कोयतुर की कोया पुनेमी अधूरी रहती है विशेष कर बस्तर में .... #पेनसिस्टम_बस्तर_कोयतुर

जय सेवा
प्रकृति सेवा

यह जो भाषा विज्ञान का मेथडोलाॅजी है बहुत कमाल का है  इससे से पूरा हकीकत छन कर बाहर आ रहा है।

सारांश : #जातियों_की_उत्पत्ति_नहीं_निर्माणक_पर_अध्ययन_करो

नोट: सुझाव व विशेष शोध सादर हमेशा संप्रेषित है।
आलेख : माखनलाल सोरी।
९९७७८३०३३०

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