कप्पे रावपेन

कोयापुनेम
नार्र परगना गढ़ कोट व्यवस्था
नार्र व्यवस्था
नार्र व्यवस्था के सर्वोच्च भूमियार
तल्लुरमुत्ते
कडरेंगाल
यायाहक
रावपेन
नौ कन्यांग
बगरुम

यह किसी भी गाँव की महत्वपूर्ण आधारभूत संरचना होती है। इन पेनों की आधार सत्ता ही उस गाँव की सुख दुख का आधार है। यदि इन आधार सत्ता में कमजोरी है मतलब उस गाँव में कलह ही है। यह व्यवस्था नार्र बांदन कहलाता है। यह व्यवस्था गाँव के माटी गांयता , चीकला गांयता व बुमियार गांयता के एक सुल से ही संभव होता है। उपरोक्त सभी पेनों को नियंत्रित कर संयोजित करना ही किसी भी गाँव का आधार है। इसी मौलिक पेनों में से महत्वपूर्ण नार्र व्यवस्था का पेन होता है जिसे कप्पे राव कहते हैं । यह राव पेन उतनी महत्वपूर्ण नहीं लगती है लेकिन यह कहीं सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। क्योंकि यह राव पेन ही दिन रात की व्यवस्था को संचालित करती है। कप्पे राव पेन के कारण ही संपूर्ण पृथ्वी में संपूर्ण जीव जगत को दो अवस्थाओं से होकर संरचनात्मक जैविक क्रियाओं को संतुलित संपादन में अति महत्वपूर्ण योगदान है। कप्पे राव की प्राकृतिक शक्ति के कारण ही जैविक जीवों को निद्रा अवस्था (निष्क्रिय जैविक अवस्था) से गुजरना पड़ता है। क्योंकि बिना निष्क्रिय जैविक अवस्था से गुजरे सक्रिय जैविक अवस्था असंभव होती है। सक्रिय जैविक अवस्था प्रकृति की संरचनात्मक प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण होती है। और किसी भी जीव के लिए हमेशा सक्रिय जैविक अवस्था उतना ही असंभव है जितना कि समय व गति बराबर संवेग का नहीं होना अर्थात् विनाश । अर्थात् संरचनात्मक प्रक्रिया सक्रिय व निष्क्रिय जैविक अवस्थाओं का संयुग्मन ही है। तभी प्रकृति में संरचना (जीव) का आधार है। प्रकृति का निर्माण ही सक्रिय (+) निष्क्रिय (-) के संयुग्मन से हुई है। वहीं जैविक समुदाय में निष्क्रिय जैविक अवस्था के प्रमुख संचालक कप्पे रावपेन हैं । जिसकी स्थापना प्रत्येक कोयतुर नार्र में सुदृढ़ रुप से है। इस पेन की स्थापना राजाराव पेन के निर्देश पर बुमियार अर्थात् शंभू सेक द्वारा किया गया है। जो बाद में बुमियार गांयता के द्वारा किया गया है। लेकिन वर्तमान में कई गांवों में कप्पे रावपेन की सेवा अर्जि नहीं होन तथा कप्पे राव के नियमों का पालन नहीं होने  के कारण इसका दुष्प्रभाव दिखाई दे रहा है। कप्पे रावपेन के नियमों का पालन नहीं होने के कारण वर्तमान में अवसाद, अनिद्रा, घबराहट ,थकान ,मानसिक विकार, हृदयरोग, उदर रोग, बहुतायत में होने लगे हैं । वहीं जिस गाँव में कप्पे राव के नियमों व सेवा अर्जि का पालन होता है उस कोयतुर नार्र में उपरोक्त भौतिक ब्यावधियों का प्रभाव नगण्य होता है। चाहे तो समाज वैज्ञानिक व चिकित्सा वैज्ञानिक इसका अध्ययन कर सकते हैं । कप्पे राव एक महत्वपूर्ण रावपेन है इस पेन की महत्वपूर्ण भूमिका के कारण ही कोयतुर श्रम, संरचना व सेवा के बल पर आज भी काबिल कोयतुर प्रकृति सेवक बना हुआ है।

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