बस्तर में कोयतुर इतिहास के प्रमाण

आदिवासीयो के इस धरती  के मालिक  होने के   सबसे प्राचीनतम जीवन्त साक्ष्यों में  से एक >>>>

केबीकेएस डिस्कवर टीम द्वारा  एक और नए  व अदभुत गुफा चित्रों  की खोज :
  पेन सिस्टम  से नए  भित्ति चित्रों  की खोज में  निकले के बी के एस  डिस्कवर टीम के लयोर साथियों को बहुत  अदभुत रहस्यों को समेटे एक नई  जगह  मिली है. . . .  गोण्डी लैंग में  इन  भित्ति चित्रों को  नत्तूर  हाता / नत्तूर  कोटाना / कोटना मट्टा/ कोवा गोटूल/ लया मट्टा/ किरकिची   आदि नामों से  जाना जाता है. . . .  प्रथम विश्लेषण  पर इनके तीन चरण दृष्टिगोचर  हो रहे हैं. . .  एक 6000 से 8000 साल पुरानी , दुसरी  8000 से 10000 साल पुरानी  व तीसरी  10000-30000 वर्ष  से भी पुरानी भित्ति चित्र  . . . . . इनकी पेन्ट बनाने की  तकनीकी  इतनी विकसित  थी कि आज भी  इतने सहस्राब्दियों बाद भी  सुरक्षित है. . .  . . .  इन चित्रों में  आदिवासी  समुदाय  के  परंपरागत  जीवन  शैली  की झलक  दिखाई देती है. . . .  कुछ  भित्तिचित्र  पहादीं पारी कुपार लिगों पेन  से सम्बन्धित हैं. . . .  कुछ  चित्र  हड़प्पीयन शैली  से साम्यता  लिए  हुऐ हैं. . .  कुछ में  टोटेमिक सिस्टम  के  प्रारंभिक  चरण  को इंगित  करती  हुई  दिखलाई  गई है. .
अब चाहे वे दिकू   अब भी  निर्लजता से चाइनीज  सभ्यता /मोसोपोमिया/ऋग्वेदियन /सुमेरियन  को चित्रकला  की  खोजकर्ता  कहें  या लिखने की शुरुआत करने वाले  कहें . . . . . लेकिन  ऐ प्रमाण  चिख चिखकर कह रहे हैं. . . कि  कोया (गुफा ) सभ्यता  मानव की प्रथम  आवासीय  परिसर  थे . . .  जिनमें  चित्र कला, मनोरंजन,  नृत्य,  लेखन कला, टोटेमिक परिगणनाऐ, कृषि  व शिकार  तकनीकी,  कोयतोरिन तकनीकी आदि का प्रारंभिक  विकास  हुआ है. . .  इसलिए  द्रविड़ीयन  परिवार के  भाषाओं की  ग्रान्डमदर /आजी /दादी कहलाने  वाली गोण्डी  लैंग में  इनके  लिए  मूल शब्द  विद्यमान है. . . . . . और इन स्थलों  को अभी भी हमारे  पेन सिस्टम  में  अपने पुरखों के  द्वारा  बनाए  गए  मानकर समय समय पर  सेवा अर्पण  किया  जाता है. . .
. . .  पेन गायता भादू मरकाम  के नेतृत्व में के बी के एस डिस्कवर टीम  के खोजी  सदस्य  योगेश नरेटी  (काकेर), जगत  मरकाम (  विश्रामपुरी ) ,  संदीप सलाम  (कन्हारपुरी काकेर ),  जयलाल मरकाम (  विश्रामपुरी )  दिनेश  मरकाम (  दशपुर) , संतोष मरकाम (कोण्डागांव ) ,  सभी पेन शक्तियों  को तथा  इन भित्ति चित्रों/नत्तूर कोटाना को बनाने वाले  हमारे  दादा के दादा के दादा के दादा के दादा के दादा . . . . . . . .  के दादा  के दादा के दादा  को . . . . .
बहुत बहुत जय सेवा! प्रकृति सेवा!
            जय हजोरपेन! जय आदिवासी!

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