आंगापेन की आकृति
आंगापेन पंडना
आंगापेन मतलब अंग में सवार होने वाले पेन ही आंगापेन होते हैं ।
आंगापेन निर्माण के बारे में सियान बताते हैं कि जिस पेड़ की लकड़ी से आंगापेन बनाने का होता है उस पेड़ को जिस व्यक्ति पर पेन सवार होता है वह जंगल या जहाँ पर भी संबंधित पेड़ होता है उस पेड़ से लिपट जाता है। उक्त पेड़ का पहले #माहला भी किया जाता है। उक्त पेड़ को पेन नेंग से काटकर पेन राउड़ में लाया जाता है या कई परगना में जैसे कि कोनगुड़ परगना में लकड़ी को तुरन्त नहीं बनाया जाता है बल्कि लकड़ी को काटकर एक वर्ष वैसे ही खड़ा रहने दिया जाता है और यह देखा जाता है कि कहीं लकड़ी में #दीयांर (दीमक) तो नहीं लगा???यदि लकड़ी में दीयांर लग गई तो उस लकड़ी से आंगा नहीं बनाया जाता अन्य वृक्ष की फिर तलाश की जाती है। आंगा बनाने का कार्य #समधान(अक्को, आजो) गोत्र परिवार के लोग ही करते हैं । आंगा बनाते समय बहुत से नियमों का पालन अनिवार्य होता है। जैसे आंगा का निर्माण तीन, पांच या सात दिनों में ही होना चाहिए साथ ही आंगा बनाने वाले पुरुष पर किसी ऋतुस्राव स्त्री की छाया नहीं पढ़ना चाहिए या संबंधित पुरुष की पत्नी ऋतुस्राव नहीं होना चाहिए । आंगा निर्माण के दौरान समधान जो बनाने का कार्य करते हैं उतने दिन तक दिन के समय उपवास रहना होता है एवं रात्रि को स्वयं भोजन पकाकर खाना होता है।
आंगापेन का स्वरूप
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आंगा बनाने की तिथि भी चंद्रमा की तिथि के अनुसार तय की जाती है। पांच-पांच हाथ लंबे गोलाकार मोटे दो एवं दो-दो हाथ लंबी लकड़ी के ही तीन टुकड़े समान अंतर में आड़े जमा दिये जाते हैं एवं सामने वाली लकड़ी पर चांदी या तांबे से बना नाग सर्प के आकार का होता है जड़ दिया जाता है।बराबर लकड़ी की दो डंडियों को #सिहाड़ी रस्सी से बांधकर शरीर बनाया जाता है। बीच के जोड़ी के मध्य डंडा का सिर मुर्गी के सिर के समान होता है जिसे #कोको कहते हैं ।वह उसके कुल गोत्र टोटम का प्रतीक होता है तथा आंगापेन के शरीर को चांदी के पिट्टे पहनाकर श्रृंगार किया जाता है। आंगा निर्माण के बाद दोनों गोलाकार लंबी लकड़ी पर सामने की ओर #लोहार द्वारा दो लोहे की विशेष खीला लगाई जाती है जो एक इंच बाहर छोड़ दिया जाता है। यह खीला आंगा के उम्र को भी प्रदर्शित करते हैं । ग्राम #आंवरी परगना केशकाल के #कात्तिमुदिया आंगा पेन के पुजारी #अर्जुननेताम के अनुसार आंगापेन की उम्र के बढ़ने के साथ ही साथ वह खीला पेनशक्ति से लकड़ी के अंदर घुसते जाता है। जब आंगापेन की मृत्यु का समय आता है तब तक यह खीला पुर्ण रूपेण लकड़ी में समाहित हो जाता है।
यह माना जाता है कि लोहार अपने पुरखा पेन #खुटी_डोकरा को खीला में आमंत्रित कर आंगा में लगाता है। खुटी डोकरा को #खण्डामुदिया का बेटा माना जाता है।
किसी किसी आंगा में दो #कोको पाये जाते हैं। यह इस बात की ओर इशारा करता है कि इस आंगा में पति-पत्नी एक साथ रह रहे हैं । इस प्रकार के आंगा #फुण्डेर केशकाल के #कराठी_मुदिया व #भानपुरी फरसगांव के #सोनकुंवर आंगापेन के दो कोको हैं ।
निर्माण कार्य पूरा होने के बाद पेन करसाड़ के द्वारा उसमें #जीवा_पयहना का विधान है। इसकी जानकारी क्रमशः अन्य आलेख पर ....
साभार : डा. किरण नुरुटी द्वारा लिखित #बस्तर_के_गोण्ड_जनजाति_की_धार्मिक_अवधारणा से एवं मेरे स्वयं के जानकारी के अनुसार संपादित कुछ अंश ।
सेवा सेवा
अच्छी जानकारी !
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