अमुरकोट

अमूरकोट    ( अमर कंटक ) :------- गोंडवाना का उगम स्थल ------
--- अमूर कोट को वर्त्तमान में "अमरकंटक " कहा जाता है।  मध्यप्रदेश के शहडोल जिल्हे की सिहगपुर तहसील में अमूरकोट स्थित  है।  अमूरकोट  का गोंडी अर्थ समुंदर के पानी में कभी न डूबा  हो ऐसा कोट होता है।  अमूरकोट नरमादा नदी का उद्गम  स्थल है।  गोंडी गणगाथा के अनुसार प्राचीन काल में जब सिरडी सिंगरदीप में " फड़ा कलडुब ( महाप्रलय ) हुवा था तब  अमूरकोट ही एक मात्र ऐसा पर्वत था जो समुद्र के जल  की सतह  के ऊपर दिखाई दे रहा था।  वहां पर फरावेन सईलागरा ( जेष्ठ दाऊ दाई ) का जोड़ा जीवित था।   जिसने अपनी कोख से कोया- वंशीय कोईतुर गोन्दोला के गोंडीवेन गण्डजीवो को जन्म दिया और वहां से सिंगारदिप में आकर उन्होंने अपना वेलविस्तार किया।  इस तरह  पंचखण्ड दिप समूह के गोंडवाना भूभाग में निवास करने वाले कोया वंशीय गोंडीवेन समुदाय के गण्डजीवो की उत्पत्ति स्थल अमूर कोट है।    डॉ धर्मेंद्र प्रसाद पर डॉ हंसमुख सांकलिया  जैसे पुरातत्व वादी ने यह सीधा क्र दिया की प्राचीन कल में अमरकंटक के चारो और कभी समुद्र लहराता था।
---------अमूर कोट में पंचखण्ड धरती के स्वामी सम्भुसेक का निवास था। सम्भुसेक उपाधि धारक इस पंचखण्ड धरती के अनेक स्वामी सतपुड़ा के पेंकमेढ़ी  में हुये है। उनमे से सम्भु- गवरा का निवास अमूरकोट में था।  सम्भु- गवरा के समकालीन गोंडी पुनेम मुठवा रूपोंलांग पहांदी पारी कुपार  लिंगो , गोंडी पुनेम माता रायतार जंगो  और गोंडी सगापेन की माता कली कंकाली भी थी। 
  -------- अमूरकोट में इसके अतिरिक्त और भी स्थल है जो कोया- वंशीय गोंडीवेन समुदायों के गण्डजीवो की जन्मदाता शक्ति फरावेन सईलागरा के मूल स्थल की पहचान बताते है।  जैसे  " नर्मदाना उकाड़  " एक ऐसा स्थल है जो गोंडी गण्डजीवो  के  जेष्ठ  माता पिता फरावेन सईलगरा का झूला है। वही से नरमादा का उगम हुवा है उस नरमदाना उकाड़ स्थल को वर्तमान में नरमादा अकाडा  याने  प्रणय स्थल कहा जाया है। अमूर कोट की गागरादाई की मूर्ति कोया -वंशीय कोईतूर गोन्दोला के गोंडी गण्डजीवो की उत्पत्ति को बयान  करती है।  वहां पर एक मर्कण्डापेन ठाना है जिसके चारो और सम्भु- गवरा के मुर्तिया है मर्कण्डापेन ठाना यह भी गोंडी शब्द है जो मां + अर्क+ अंडा+ पेन +थाना शब्दों से बना  है।  माँ  यानि  मावा ( हमारा ) अर्क ( दुःख  ) अण्डा ( निवारक ) पेन यानि शक्ति और थाना याने स्थल मर्कण्डापेन ठाना के पास जो तालाब है उसमे नहाने से सभी प्रकार के चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है ऐसा गोंडी गनो की मान्यता है।
-------------- गढ़ mandla  के गोंड राजा करणसिंह  में अमूरकोट में सम्भु-गवरा के ३ देवालय बनाये  है , जो आज भी वह जीर्ण अवस्था में विद्यामान  है , करणसिंह राजा की रानी चांदागढ़ के जयकासुर राजा के कन्या मैनावती थी , राजा करण और रानी मैनावती की गाथा आज भी गोंडी समुदाय में " करण राजाना दशा अवदशा  रानीना वेसोडि " ( करण राजा की  दशा अवदशा रानियों की कथा ) के रूप में प्रचिलित है।
   अमूर कोट के वेनढाई आचेल ( वेण्डियाचल ) पेंकमेडी आचेल  ( पेंचमेढ़ी अंचल )  वेन आचेल ( वेनचल )  पेनगोंदाचेल  ( वेनगंगा अंचल ) सिरड़ी सिंगरआंचेल ( सिदी शहडोल अंचल ) वेनकोप कोयली कचाडाचेल  ( गोंडी सगा वेनो के मुक्ति भूमि कोईलीकचाड़ अंचल ) का संगम है।  अमूरकोट के अभी स्थलों  के नाम जैसे वंशभिड़ी , नरमादाल , जवांराल , सोनगोदाल  , दमगढ़ , चेतापहाड़ , कोयावीर , चऊरा ,  धनपुडा  , अजमीरागढ़  अंद्रिभेट आदि गोंडी भाषा के ही है जिसका अर्थ गोंडी भाषा के माध्यम से जाना जा सकता है। ..  --- अमूर कोट को वर्त्तमान में "अमरकंटक " कहा जाता है।  मध्यप्रदेश के शहडोल जिल्हे की सिहगपुर तहसील में अमूरकोट स्थित  है।  अमूरकोट  का गोंडी अर्थ समुंदर के पानी में कभी न डूबा  हो ऐसा कोट होता है।  अमूरकोट नरमादा नदी का उद्गम  स्थल है।  गोंडी गणगाथा के अनुसार प्राचीन काल में जब सिरडी सिंगरदीप में " फड़ा कलडुब ( महाप्रलय ) हुवा था तब  अमूरकोट ही एक मात्र ऐसा पर्वत था जो समुद्र के जल  की सतह  के ऊपर दिखाई दे रहा था।  वहां पर फरावेन सईलागरा ( जेष्ठ दाऊ दाई ) का जोड़ा जीवित था।   जिसने अपनी कोख से कोया- वंशीय कोईतुर गोन्दोला के गोंडीवेन गण्डजीवो को जन्म दिया और वहां से सिंगारदिप में आकर उन्होंने अपना वेलविस्तार किया।  इस तरह  पंचखण्ड दिप समूह के गोंडवाना भूभाग में निवास करने वाले कोया वंशीय गोंडीवेन समुदाय के गण्डजीवो की उत्पत्ति स्थल अमूर कोट है।    डॉ धर्मेंद्र प्रसाद पर डॉ हंसमुख सांकलिया  जैसे पुरातत्ववादी ने यह सिद्ध कर  दिया की प्राचीन काल में अमरकंटक के चारो और कभी समुद्र लहराता था।
---------अमूर कोट में पंचखण्ड धरती के स्वामी सम्भुसेक का निवास था। सम्भुसेक उपाधि धारक इस पंचखण्ड धरती के अनेक स्वामी सतपुड़ा के पेंकमेढ़ी  में हुये है। उनमे से सम्भु- गवरा का निवास अमूरकोट में था।  सम्भु- गवरा के समकालीन गोंडी पुनेम मुठवा रूपोंलांग पहांदी पारी कुपार  लिंगो , गोंडी पुनेम माता रायतार जंगो  और गोंडी सगापेन की माता कली कंकाली भी थी। 
  -------- अमूरकोट में इसके अतिरिक्त और भी स्थल है जो कोया- वंशीय गोंडीवेन समुदायों के गण्डजीवो की जन्मदाता शक्ति फरावेन सईलागरा के मूल स्थल की पहचान बताते है।  जैसे  " नर्मदाना उकाड़  " एक ऐसा स्थल है जो गोंडी गण्डजीवो  के  जेष्ठ  माता पिता फरावेन सईलगरा का झूला है। वही से नरमादा का उगम हुवा है उस नरमदाना उकाड़ स्थल को वर्तमान में नरमादा अकाडा  याने  प्रणय स्थल कहा जाया है। अमूर कोट की गागरादाई की मूर्ति कोया -वंशीय कोईतूर गोन्दोला के गोंडी गण्डजीवो की उत्पत्ति को बयान  करती है।  वहां पर एक मर्कण्डापेन ठाना है जिसके चारो और सम्भु- गवरा के मुर्तिया है मर्कण्डापेन ठाना यह भी गोंडी शब्द है जो मां + अर्क+ अंडा+ पेन +थाना शब्दों से बना  है।  माँ  यानि  मावा ( हमारा ) अर्क ( दुःख  ) अण्डा ( निवारक ) पेन यानि शक्ति और थाना याने स्थल मर्कण्डापेन ठाना के पास जो तालाब है उसमे नहाने से सभी प्रकार के चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है ऐसा गोंडी गनो की मान्यता है।
-------------- गढ़ mandla  के गोंड राजा करणसिंह  में अमूरकोट में सम्भु-गवरा के ३ देवालय बनाये  है , जो आज भी वह जीर्ण अवस्था में विद्यामान  है , करणसिंह राजा की रानी चांदागढ़ के जयकासुर राजा के कन्या मैनावती थी , राजा करण और रानी मैनावती की गाथा आज भी गोंडी समुदाय में " करण राजाना दशा अवदशा  रानीना वेसोडि " ( करण राजा की  दशा अवदशा रानियों की कथा ) के रूप में प्रचिलित है।
---------   अमूर कोट के वेनढाई आचेल ( वेण्डियाचल ) पेंकमेडी आचेल  ( पेंचमेढ़ी अंचल )  वेन आचेल ( वेनचल )  पेनगोंदाचेल  ( वेनगंगा अंचल ) सिरड़ी सिंगरआंचेल ( सिदी शहडोल अंचल ) वेनकोप कोयली कचाडाचेल  ( गोंडी सगा वेनो के मुक्ति भूमि कोईलीकचाड़ अंचल ) का संगम है।  अमूरकोट के अभी स्थलों  के नाम जैसे वंशभिड़ी , नरमादाल , जवांराल , सोनगोदाल  , दमगढ़ , चेतापहाड़ , कोयावीर , चऊरा ,  धनपुडा  , अजमीरागढ़  अंद्रिभेट आदि गोंडी भाषा के ही है जिसका अर्थ गोंडी भाषा के माध्यम से जाना जा सकता है। ..  सौजन्य - "गोंडवाना कोट दर्शन " -- लेखक  आचार्य मोतीरावण कंगाली। . फोटो सौजन्य --- तिरुमाल नंदकिशोर नैताम  मु. मालदुगी।  गड़चिरोली। .@@@ रावणराज कोईतूर - रामटेक --०६/०६/२०१६। ....

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पटवेंन मुदिया कुंजाम गोत्र का मंडापेन

पटवेंज मुदिया होनहेड़

बस्तर में कोयतुर इतिहास के प्रमाण