गण्डवाना
॥गण्डवाना गण्डतंत्र ॥क्या है?
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गोंडवाना लैंड के मूलवंशी कोयतूरों की जीवन शैली, सामाजिक व्यवस्था, राजनैतिक प्रणाली व संस्कृति दर्शन दुनिया की सबसे प्राचीन है ।जिस समय वेदों के श्लोक नहीं बने थे (ऋग्वेद रचना काल 1500- 1000 ई पु) उससे भी लगभग 4000 वर्ष पहले अर्थात जब दुनिया में मध्य पाषाण काल (मध्य पाषाण काल10000 ई पु - 4000ई पु ) उस समय इन मूलवंशी कोयतरों की शासन प्रणाली "गण्ड चिन्ह आधारित " हुआ करता था ।अनेक गण्ड समूह के सत्ता ,संस्कृति व व्यवस्था का प्रतीक "गण्ड चिन्ह "(totem) आज भी दिखाई देता है। जैसे नाग गण्ड समूह, भील गण्ड समूह, मीन गण्ड समूह, कच्छप गण्ड समूह, पुरार(कबूतर) गण्ड समूह, परमार (चीता) ,उरांव(घोरपड़) गण्ड समूह , याद (गाय) गण्ड समूह, बाघ गण्ड समुह, सांडिल्य(बैल)गण्ड समुह, आदि आदि ।ये सभी गण्ड चिन्ह धारण करने के कारण "गोंड "कहलाते थे। इन सभी के राज्य, राजधानी गढ, किला आदि थे जो आज अपनी लोककथाओं के माध्यम से गाया जाता है ।चुंकि इनकी शासन प्रणाली का पहचान 'गण्ड चिन्ह ' से होता था इसलिए इनकी व्यवस्था को "गण्ड व्यवस्था "या "गण्ड तंत्र " कहा जाता था, इसी शब्द से बाद में "गणतंत्र "लोकतंत्र "प्रजातंत्र "शब्द व प्रणाली का विकास हुआ है ।
इन सभी कोयतूर "गण्ड समूहों के तंत्र " के संयुक्त संघ "गण्डवाना गण्डतंत्र "या "गोंडवाना गण्डतंत्र " कहलाता था, है।
किंतु आज अफसोस की बात है कि लोग "गोंड " को एक जाति मानतें हैं और "गोंडवाना "को "गोंड " की जाति व्यवस्था । जबकि कोयतूरों में जाति व्यवस्था होता ही नहीं है।जाति व्यवस्था तो बाद में इन कोयतूरों को गुलाम बनाने के लिए प्रथम आक्रमणकारियों नें बनाया और इन' संयुक्त गण्ड समूह 'के लोगों को जाति के संक्रमण द्वारा अलग थलग कर दिया गया और आज तक अलग थलग हैं ।।डां नारायण टेकाम ॥संकलक: "आदिम शोध संगत "॥
॥(कोया पुनेम संगत )॥॥गण्डवाना गण्डतंत्र ॥क्या है?
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गोंडवाना लैंड के मूलवंशी कोयतूरों की जीवन शैली, सामाजिक व्यवस्था, राजनैतिक प्रणाली व संस्कृति दर्शन दुनिया की सबसे प्राचीन है ।जिस समय वेदों के श्लोक नहीं बने थे (ऋग्वेद रचना काल 1500- 1000 ई पु) उससे भी लगभग 4000 वर्ष पहले अर्थात जब दुनिया में मध्य पाषाण काल (मध्य पाषाण काल10000 ई पु - 4000ई पु ) उस समय इन मूलवंशी कोयतरों की शासन प्रणाली "गण्ड चिन्ह आधारित " हुआ करता था ।अनेक गण्ड समूह के सत्ता ,संस्कृति व व्यवस्था का प्रतीक "गण्ड चिन्ह "(totem) आज भी दिखाई देता है। जैसे नाग गण्ड समूह, भील गण्ड समूह, मीन गण्ड समूह, कच्छप गण्ड समूह, पुरार(कबूतर) गण्ड समूह, परमार (चीता) ,उरांव(घोरपड़) गण्ड समूह , याद (गाय) गण्ड समूह, बाघ गण्ड समुह, सांडिल्य(बैल)गण्ड समुह, आदि आदि ।ये सभी गण्ड चिन्ह धारण करने के कारण "गोंड "कहलाते थे। इन सभी के राज्य, राजधानी गढ, किला आदि थे जो आज अपनी लोककथाओं के माध्यम से गाया जाता है ।चुंकि इनकी शासन प्रणाली का पहचान 'गण्ड चिन्ह ' से होता था इसलिए इनकी व्यवस्था को "गण्ड व्यवस्था "या "गण्ड तंत्र " कहा जाता था, इसी शब्द से बाद में "गणतंत्र "लोकतंत्र "प्रजातंत्र "शब्द व प्रणाली का विकास हुआ है ।
इन सभी कोयतूर "गण्ड समूहों के तंत्र " के संयुक्त संघ "गण्डवाना गण्डतंत्र "या "गोंडवाना गण्डतंत्र " कहलाता था, है।
किंतु आज अफसोस की बात है कि लोग "गोंड " को एक जाति मानतें हैं और "गोंडवाना "को "गोंड " की जाति व्यवस्था । जबकि कोयतूरों में जाति व्यवस्था होता ही नहीं है।जाति व्यवस्था तो बाद में इन कोयतूरों को गुलाम बनाने के लिए प्रथम आक्रमणकारियों नें बनाया और इन' संयुक्त गण्ड समूह 'के लोगों को जाति के संक्रमण द्वारा अलग थलग कर दिया गया और आज तक अलग थलग हैं ।।डां नारायण टेकाम ॥संकलक: "आदिम शोध संगत "॥
॥(कोया पुनेम संगत )॥
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