पट्टा

गोण्डी भाषा की प्राचीनता देखिए

पट्टा
पट्टावी
राजस्व

राजस्व हिन्दी शब्द है इसका मतलब होता है राजा/ राज्य का अंश अर्थात् संबंधित राज्य के प्रजा द्वारा राज्य के सामूहिक नियंत्रण व निर्माण हेतु जनता या प्रजा का अंश ही राजस्व है। राजस्व भागीदारी की राजस्व व्यवस्था से पूर्व एवं उपरांत की जिम्मेदारी इकाई का सर्वनाम ही पट्टा है।
पट्टा गोण्डी शब्द
पट्टावी गोण्डी शब्द
पट्टा का मतलब होता है पेट/ संतुष्टि ...पट्टा कितना महत्वपूर्ण होता है...पट्टा पंजतेक मांदी आत...मतलब पेट भर गया मतलब संतुष्टि हो गई अर्थात् सफल हो गयी ...माटी के पुजारी को पट्टा मिल गया मतलब सब कार्य सफल हो गया ...
राजस्व विभाग में पट्टा शब्द कितना प्राचीनतम है सर्वविदित है...
आंगापेन में भी पट्टा का श्रृंगार होता है पट्टा आंगापेन के मध्य भाग में जड़ित होता है।
पट्टावी पट्टा का हिसाब करने वाला गोण्डवाना लेण्ड का जिम्मेदार कुंदा (वंश) ही पट्टावी है।
पट्टा अभी से नहीं वर्षों पुराना पद्धति है जो गोण्डवाना लेण्ड के मूलवासियों में प्रचलित रही है जो आज राजस्व विभाग की महत्वपूर्ण दस्तावेज का दर्जा हासिल कर ली । पट्टा का अर्थ ही इतना विस्तार है संपूर्ण है कि इसकी व्यापकता कितना विस्तृत है।
पट्टा अर्थात् पेट ...सजीव जन्तुओं के लिए पेट कितना महत्वपूर्ण है यह समझ सकते हैं सजीव की प्रतिक्रिया का कारण ही पेट है पट्टा है । पेट की भूख का कारण संतुष्टि है। संतुष्टि ही सुख का भाव है । सुख की भाव ही सजीव जन्तु की अंतिम लक्ष्य है। पूरे संसार की संतुष्टि का कारण ही विचरण है विचरण का कारण ही सजीवता है। इस संतुष्टि का कारण ही प्राकृतिक संतुलन है। परन्तु इस संतुष्टि की अधियक्ता को ही लालच कहते हैं । इस लालच ने ही व्यवसायिकता को जन्म दिया । व्यवसायिकता ने समस्याओं को जन्म दिया । समस्याओं ने समाज को जन्म दिया । समाज ने सामुदायिकता को । सामुदायिकता वाद ने राजसाही को राजसाही ने मनुवाद को मनुवाद ने धर्मवाद को धर्मवाद ने औद्योगिकतावाद ,पूंजीवाद, साम्यवाद, मार्क्सवाद ,लेलिनवाद, वामवाद, राष्ट्रवाद को जन्म दिया ।

उपरोक्त कारक तभी मानव के लिए घातक हुए जब वे संतुष्टि अर्थात पट्टा की मौलिक वाद को नजरअंदाज कर अतिवाद को बढ़ावा दिये ....

आंगापेन के मध्य भाग में पट्टा होता है। यह पुरखापेन हम कोया समाज को अभी तक असंतुष्टिवाद से बचाये रखा है तभी हम प्रकृति के संरक्षक व संतुलित कर्ता के रुप में मौजूद हैं । इसका प्रमुख कारण पट्टा की महत्ता व संतुष्टि है। पट्टा आंगापेन के चोला में उतना ही होता है जितना वह वहन कर सकता है। इसका मतलब यह है कि प्रकृति अर्थात् भौतिक पदार्थों का उपभोग उतना ही करना है जितना से स्वयं की जीवनपद्धति निर्बाध रुप से संचालित होती है। यही प्रकृतिवाद है यही गोण्डवाना है । गोण्डवाना कोई जाति नहीं यह प्राकृतिक नियम बद्ध प्राकृतिक नियम का पालन करते हुए संपूर्ण प्रकृति की निरन्तरता बनाये रखने की पद्धति का समुच्च है।
आंगापेन की पट्टा एक विस्तृत प्राकृतिक विज्ञान है।

माखन लाल सोरी ' होड़ी'
लंकाकोट( बस्तर)

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