गोण्ड गोण्डी गोण्डवाना
गोण्ड गोण्डी गोण्डवाना
कोया पुनेम के प्राकृतिक सिद्धान्तों के अनुसार गोण्डवाना का प्रत्येक पहलू वैज्ञानिक है अर्थात् विज्ञान सम्मत् है। गो का मतलब ही ज्ञान है ज्ञान का तात्पर्य ही सर्वोत्तम मत है ।
अण्ड का मतलब जीव या जन्तु से है ।अर्थात् इस ग्रह के सर्वोत्कृष्ट ज्ञानी जीव ही गोण्ड है। गोण्ड प्रकृति के सभी संरचनाओं का ज्ञाता है रक्षक है एवं नियन्त्रक है। गोण्ड के पास जल थल वायु अग्नि आकाश के सभी क्रियाओं का सिद्धान्त ज्ञात है ।यह ज्ञान हजारों वर्षों से परम्परागत गोटुल व्यवस्था के तहत दीक्षित होकर अनवरत रुप से आज भी कायम है।
यह कोई सामान्य व्यवस्था नहीं है यह प्राकृतिक वंशानुगत हस्तांतरित होने वाली विशेष व्यवस्था है और इस प्रकार की व्यवस्था दुनिया के किसी भी समाज में नहीं पायी जाती ।गोण्ड की जीवन चक्र भी प्राकृतिक चक्र के अधीन व्यवस्थित है। जब गोण्ड का पुटसी वायना मतलब किसी बच्चे का जन्म लेना भी
पुटना -मिलना,प्राप्त होना अब
पुटसी - मिलकर या प्राप्त होकर
वायना - आना ,आगमन
अर्थात यहां स्पष्ट करना चाहता हूं कि हिन्दू धर्म के प्रचलित अवधारणा के अनुसार मनुष्य जीवन का प्राप्त होना ८४करोड़ अन्य योनि में जन्म मृत्यु चक्र का नाट नाचने के बाद मनुष्य रुप प्राप्त होता है, वाली अवधारणा से पूर्णतः रहित है। गोण्ड पुनेम के अनुसार एक नये बच्चे का जन्म धन एवं ऋण शक्तियों के आकर्षण प्रतिकर्षण उपरान्त समायोजन के प्रतिरूप को ही स्वीकार किया जाता है। यह सिद्धान्त विज्ञान द्वारा भी प्रतिपादित करके आज सभी के सामने है। जिसे कोया पुनेम में सल्ला गांगरा के नाम से जानते हैं जो प्रत्यक्ष रुप में माता पिता के स्वरूप में संसार में मौजूद हैं ।
गोण्डी भाषा
गोण्डी भाषा इस भूखण्ड की सर्वप्रथम मातृभाषा है यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है।गोण्डी भाषा के अवशेष मोहन जोदड़ो सिन्धु घाटी सभ्यता से प्राप्त शिलालेखों में अवस्थित हैं ।इन शिलालेखों में लिखित गोण्डी भाषा के समृद्ध लिपि को देखकर यह अनुमान लगा सकते कि इसकी उत्पत्ति कितनी आदिम है । गोण्डी भाषा के इन शिलालेखों को पढ़ने की महत्वपूर्ण सफलता गोण्डवाना के गोण्ड पुत्र प्रख्यात गोण्डी साहित्य लेखक तिरुमाल मोतीरावेन कंगाले ने प्राप्त की है। इतना समृद्ध आदिम भाषा होने की माद्दा रखने के उपरान्त भी मनुवाद से ग्रसित इंडिया की सरकार ने गोण्डी भाषा को आठवीं अनुसूची में भी शामिल नहीं किया है। यह सरासर भेदभाव है प्रकृति पुत्र गोण्ड के लिए। इस गोण्डी भाषा के माध्यम से ही गोण्ड की समृद्ध प्राकृतिक सिद्धान्त, संस्कृति का वंशानुगत हस्तांतरण होते आया है और हो रहा है। वर्तमान परिदृश्य में गोण्डी भाषा के बोलने लिखने वाले गोण्डियन लोगों की संख्या में गिरावट हो रही है जो बेहद निराशाजनक व चिंतनीय है। नयी पीढ़ी में गोण्डी भाषा द्वारा शिक्षण व्यवस्था का अभाव होना इसका प्रमुख कारण है। वहीं मनुवाद के कुचक्र ने गोण्डी भाषा को असभ्य समुदाय की भाषा नहीं बोली ठहराने में कोई कसर नहीं छोड़ी ।लेकिन आज भी गोण्ड व गोण्डी भाषा डबल शक्ति के साथ जीवटता लिए हुए विकास कर रहा है। चूंकि वर्तमान में जो नयी पीढ़ी गोण्ड गोण्डी गोण्डवाना को वैज्ञानिकता के कसौटी पर कस कर परीक्षण करने पर विश्वास कर रहे हैं यह गोण्डवाना की मजबूत होने के संकेत हैं ।परंतु हमें गोण्डी भाषा को लेकर सामाजिक रूप से बहुत ज्यादा काम करने की आवश्यकता महसूस हो रही है क्योंकि जो गोण्ड परिवार आधुनिक शिक्षा पद्धति से शिक्षित होने के बाद सामाजिक विलगन या विघटन कर रहा है। समाजशास्त्रीय शब्दों में इसे सामाजिक विलगन कहते हैं ।
सामाजिक विलगन से किसी भी समाज में सामाजिक विघटन को बढ़ावा मिलता है। यह विघटन भविष्य में समाज के लिए आत्महत्या के समान है।
गोण्डी भाषा में वह सभी गुढ़ रहस्य अवस्थित हैं जो आज तक प्रकृति व प्रकृति शक्ति को बचाकर रखने में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं ।गोण्डी भाषा का विद्यालय गोटुल है।गोटुल गोण्डवाना के मुठवा " पहांदी पारी कुपार लिंगो " द्वारा स्थापित इंस्टीट्यूट है जो वैज्ञानिक सम्मत् है इस इंस्टीट्यूट का दुनिया में कोई तोड़ नहीं है कोई इसके समकक्ष संस्थान नहीं हैं ।
आज के लिए इतना ही
क्रमशः शेष जारी रहेगा .....
जय सेवा,प्रकृति सेवा ....
कोया पुनेम के प्राकृतिक सिद्धान्तों के अनुसार गोण्डवाना का प्रत्येक पहलू वैज्ञानिक है अर्थात् विज्ञान सम्मत् है। गो का मतलब ही ज्ञान है ज्ञान का तात्पर्य ही सर्वोत्तम मत है ।
अण्ड का मतलब जीव या जन्तु से है ।अर्थात् इस ग्रह के सर्वोत्कृष्ट ज्ञानी जीव ही गोण्ड है। गोण्ड प्रकृति के सभी संरचनाओं का ज्ञाता है रक्षक है एवं नियन्त्रक है। गोण्ड के पास जल थल वायु अग्नि आकाश के सभी क्रियाओं का सिद्धान्त ज्ञात है ।यह ज्ञान हजारों वर्षों से परम्परागत गोटुल व्यवस्था के तहत दीक्षित होकर अनवरत रुप से आज भी कायम है।
यह कोई सामान्य व्यवस्था नहीं है यह प्राकृतिक वंशानुगत हस्तांतरित होने वाली विशेष व्यवस्था है और इस प्रकार की व्यवस्था दुनिया के किसी भी समाज में नहीं पायी जाती ।गोण्ड की जीवन चक्र भी प्राकृतिक चक्र के अधीन व्यवस्थित है। जब गोण्ड का पुटसी वायना मतलब किसी बच्चे का जन्म लेना भी
पुटना -मिलना,प्राप्त होना अब
पुटसी - मिलकर या प्राप्त होकर
वायना - आना ,आगमन
अर्थात यहां स्पष्ट करना चाहता हूं कि हिन्दू धर्म के प्रचलित अवधारणा के अनुसार मनुष्य जीवन का प्राप्त होना ८४करोड़ अन्य योनि में जन्म मृत्यु चक्र का नाट नाचने के बाद मनुष्य रुप प्राप्त होता है, वाली अवधारणा से पूर्णतः रहित है। गोण्ड पुनेम के अनुसार एक नये बच्चे का जन्म धन एवं ऋण शक्तियों के आकर्षण प्रतिकर्षण उपरान्त समायोजन के प्रतिरूप को ही स्वीकार किया जाता है। यह सिद्धान्त विज्ञान द्वारा भी प्रतिपादित करके आज सभी के सामने है। जिसे कोया पुनेम में सल्ला गांगरा के नाम से जानते हैं जो प्रत्यक्ष रुप में माता पिता के स्वरूप में संसार में मौजूद हैं ।
गोण्डी भाषा
गोण्डी भाषा इस भूखण्ड की सर्वप्रथम मातृभाषा है यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है।गोण्डी भाषा के अवशेष मोहन जोदड़ो सिन्धु घाटी सभ्यता से प्राप्त शिलालेखों में अवस्थित हैं ।इन शिलालेखों में लिखित गोण्डी भाषा के समृद्ध लिपि को देखकर यह अनुमान लगा सकते कि इसकी उत्पत्ति कितनी आदिम है । गोण्डी भाषा के इन शिलालेखों को पढ़ने की महत्वपूर्ण सफलता गोण्डवाना के गोण्ड पुत्र प्रख्यात गोण्डी साहित्य लेखक तिरुमाल मोतीरावेन कंगाले ने प्राप्त की है। इतना समृद्ध आदिम भाषा होने की माद्दा रखने के उपरान्त भी मनुवाद से ग्रसित इंडिया की सरकार ने गोण्डी भाषा को आठवीं अनुसूची में भी शामिल नहीं किया है। यह सरासर भेदभाव है प्रकृति पुत्र गोण्ड के लिए। इस गोण्डी भाषा के माध्यम से ही गोण्ड की समृद्ध प्राकृतिक सिद्धान्त, संस्कृति का वंशानुगत हस्तांतरण होते आया है और हो रहा है। वर्तमान परिदृश्य में गोण्डी भाषा के बोलने लिखने वाले गोण्डियन लोगों की संख्या में गिरावट हो रही है जो बेहद निराशाजनक व चिंतनीय है। नयी पीढ़ी में गोण्डी भाषा द्वारा शिक्षण व्यवस्था का अभाव होना इसका प्रमुख कारण है। वहीं मनुवाद के कुचक्र ने गोण्डी भाषा को असभ्य समुदाय की भाषा नहीं बोली ठहराने में कोई कसर नहीं छोड़ी ।लेकिन आज भी गोण्ड व गोण्डी भाषा डबल शक्ति के साथ जीवटता लिए हुए विकास कर रहा है। चूंकि वर्तमान में जो नयी पीढ़ी गोण्ड गोण्डी गोण्डवाना को वैज्ञानिकता के कसौटी पर कस कर परीक्षण करने पर विश्वास कर रहे हैं यह गोण्डवाना की मजबूत होने के संकेत हैं ।परंतु हमें गोण्डी भाषा को लेकर सामाजिक रूप से बहुत ज्यादा काम करने की आवश्यकता महसूस हो रही है क्योंकि जो गोण्ड परिवार आधुनिक शिक्षा पद्धति से शिक्षित होने के बाद सामाजिक विलगन या विघटन कर रहा है। समाजशास्त्रीय शब्दों में इसे सामाजिक विलगन कहते हैं ।
सामाजिक विलगन से किसी भी समाज में सामाजिक विघटन को बढ़ावा मिलता है। यह विघटन भविष्य में समाज के लिए आत्महत्या के समान है।
गोण्डी भाषा में वह सभी गुढ़ रहस्य अवस्थित हैं जो आज तक प्रकृति व प्रकृति शक्ति को बचाकर रखने में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं ।गोण्डी भाषा का विद्यालय गोटुल है।गोटुल गोण्डवाना के मुठवा " पहांदी पारी कुपार लिंगो " द्वारा स्थापित इंस्टीट्यूट है जो वैज्ञानिक सम्मत् है इस इंस्टीट्यूट का दुनिया में कोई तोड़ नहीं है कोई इसके समकक्ष संस्थान नहीं हैं ।
आज के लिए इतना ही
क्रमशः शेष जारी रहेगा .....
जय सेवा,प्रकृति सेवा ....
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