कोयतोर टेक्नालॉजी का युनिवर्स सिद्धान्त
कोयतोरक टेक्नालाजी का यूनिवर्सिटी सिद्धान्त
सादर मूल लेखक तिरुमाल नारायण सिंह मरकाम आजो के कलम से
कोयतोरिन टेक्नोलॉजी में यूनिवर्स की विस्तृता को समझने के लिए किसी भी कण की सुक्ष्मता से समझा जाता है . . . पृथ्वी, सूर्य , तारे से लेकर सभी पिण्ड /कण गतिशील व अपने से ज्यादा द्रव्यमान के समीपस्थ पिण्ड से अनुशासित हैं. . . कणों के इसी द्रव्यमान के कारण वह एक दुसरे के आकर्षित करने का प्रयास करते रहता है. . . शंभू शेक प्रदत्त मूदं शूल सर्री पिण्डो के आकर्षण व गति के बीच सन्तुलन को परिभाषित करता है. . . यह कणों की गहनता व विस्तृता की अनन्तता दोनों को एक साथ परिभाषित करता है. . . . सुक्ष्मता में भी हमे इलेक्ट्रान की तरह ऋणात्मक , प्रोट्रान की तरह धनात्मक कण वह शून्य आवेशित कण न्यूट्रान भी जरूर मिलेगे . . . . . इस तरह के व्यवहार यूनिवर्स के हर पिण्ड में देखने को मिलता है. . . ब्रहमाण्ड को समझने के कोया पुनेम में "समय" "पेन पयाना" " "लिंगो " को समझना अनिवार्य है. . . जिसे वैज्ञानिक समुदाय "समय " "ऊर्जा हस्तांतरण " व " गाॅड" पार्टिकल के रूप में अब जानने लगी है. . . आइन्सटिन ने अपने E=mc2 के सुपर फार्मूले के माध्यम से " समय " को स्थिर करने की कल्पना की थी. . . पर "गाड " की खोज नहीं होने से आधुनिक विज्ञान अब तक परिकल्पनाओ तक ही पहुंच पाई है. . . . कोयतोरिन तकनीकी "समय" को हमेशा वर्तमान में बनाऐ रखा भूत और भविष्य को हमेशा वर्तमान में साधे रखा . . . . पहादीं पारी कुपार लिगों ने वलेक मड़ा सिद्धांत में आज से हजारों वर्ष पूर्व "गाड पार्टिकल " की परिकल्पना कर उनके प्रकृति सम्मत व्यवहारिक अनुप्रयोग भी करना सीखाया . . . . सूर्य 🌞 चन्द्र पृथ्वी सहित ब्रहमाण्ड की आकार को भी भिमाल पेन ने अपने " मेन्ज " थ्योरी में बता दिया है. . . जबकि आज के वैज्ञानिक अभी इसके फैलाव की ही परिकल्पनाओ में लगे हुए हैं. . . . . कोया पुनेम ब्रहमाण्ड के इस रहस्यमय पृथ्वी पर जीवन की सम्भावनाओं को अन्नतकाल तक सुरक्षित रखने की तकनीकी विकसित कर रहा है. . . . . जबकि आधुनिक विज्ञान भी लगभग यही सोच रहा है लेकिन सिर्फ मानव जाति के लिए. . . . मानव की अपने लिए पनपने वाली यही अतिमहत्वकांक्षा स्वयं मानव समेत पृथ्वी पर जीवन को भी नष्ट कर बैठेगी . . . . . पावेंन कोयतुर उईका जी आपने बहुत ही महत्वपूर्ण बिन्दु पर चर्चा किऐ इसके लिए आपको बहुत बहुत जय सेवा! प्रकृति सेवा!
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