पेन्ड्रावन्डीन याया व जहकाडुमा
#कोयतुर जिवना प्रकृति जिवना
कोयापुनेम के सिद्धान्त अनुसार कोयतुर का जन्म पृथ्वी पर एक कोशिकीय जीवों से बहुकोशिकीय जीवों के जीवन उद्विकास से हुआ है। कोयतुर समाज का उद्विकास व इतिहास भी अन्य जीवों की जैवकीय उद्विकास इतिहास के समान ही है। इस इतिहास में ही वेन व पेन स्वरूप का भी विकास हुआ। जीवित कोयतुर वेन व मृत्यु (पांच तत्वों में से वड़ीय/हवा का अभाव) उपरान्त ऊर्जा का रुप परिवर्तन ही पेन रुप कहलाता है। इसी क्रम में कोयतुर समाज में जैव संक्रियाओं का क्रमिक विकास हुआ है। इसका प्रमाण आज से लगभग १००००वर्ष पूर्व से प्राप्त है। कोयतुर की वेन से पेन में परिवर्तन को ही कोयतुर यायान लेंग में चोला पलटाना भी कहते हैं ।
इसी संदर्भ में मैं आज गोंडीन पेन / पेन्ड्रावन्डीन /गप्पागोसीन/घरजियीन/ सतीमायीन याया का जिक्र करना चाहता हूं मतलब वेन रुप से पेन रुप में कैसे परिवर्तन हुआ? ?? जिसे संपूर्ण बस्तर व उड़ीसा में कोयतुर समाज उपरोक्त भिन्न-भिन्न नामों से सेवा अर्जि करते आ रहे हैं । इस यायाल पेन को बस्तर में प्रणय समर्पण की मिशाल के रुप में " झिटकू-मिटकी" की जोड़ी के रुप में हाटिया लोग प्रचारित भी किये हैं । जबकि पेन्ड्रावन्डीन याया नयताम कुल की सात भाईयों की एकलौती लाडरी हेलाड़ (बहन) थी। सातों हरडुं (भाइयों) की मरमिंग हो गयी थी । चूंकि पेन्ड्रावन्डीन याया जिसका नाम हिन्द बताया जाता है याया के पुजारी के द्वारा लाडरी बहन थी इसलिए उनके हरन्डुओं ने सोचा कि हम बहन को समधान घर ना भेज कर हमारे समधी को ही हमारे घर में लाकर मरमिंग करते हैं इस कोयतुर रूढ़ी को लमसेना कहते हैं । कोयतुर समाज की रूढ़ी ही संविधान है विधि है उपविधि है आदेश है । भारत का संविधान के अनुच्छेद १३(३) पैरा क देखिए । इस अनुच्छेद में भी कोयतुर समाज की रूढ़ी प्रथा का उल्लेख है। उसके हरन्डुओं ने पास के ही चांदानार के मरकाम सगापाड़ी के यहाँ से लमसेना के रुप में जहकाडुमा जो कि एक पैर से लंगड़ाकर चलता था को स्वीकार किये । जहकाडुमा की शारीरिक विकलांगता के कारण परम्परागत नाम कोड़िया भी कहा जाता था। कोयतुर लाडरी लैया हिन्द को जहकाडुमा से कुछ ही दिनों में अगाध प्रेम हो गया। चूंकि जहकाडुमा परिश्रमी व गंभीर प्रकृति का था। लमसेना वह रूढ़ी है जिसमें लमसेना रहने वाले कोयतुर लयोर को स्वयं को लैया के मां-बाप व उसके परिवार में परिश्रम ज्ञान से साबित करते हुए उनकी बेटी के नजरों में प्रेम पसंद आना की परिवीक्षा अवधि होती है। यदि कोई लमसेना इस परिवीक्षा में साबित नहीं कर पाया तो लैया की मनो इच्छा को पूछ कर लमसेना को वापस भी किया जाने का प्रावधान होता है। यदि लमसेना परीक्षा में सफल होता है तब ही उनकी मरमिंग हेतु लड़की का पिता माता बुमकाल को सूचित करते हैं । यह लमसेना रूढ़ी कोयतुर समाज में उत्तम वर की कसौटी को इंगित करता है। लमसेना लैया की इच्छा के अनुसार ही तय होता है जबरदस्ती को कोयतुर समाज नकारती है। लमसेना प्रायः जब किसी कोयतुर परिवार में एक ही कन्या संतान होने की स्थिति में बहुतायत एवं कोयतुर माता-पिता की लाडरी कन्या यदि उसके घर में पुत्र होने की स्थिति में भी विरल संभावित स्वतन्त्र होती है। यह कोयतुर समाज की वंशवृद्धि व कुल संपत्ति की अहस्तान्तरणीय प्रकृति को प्रमाणित परिभाषित करती है। लमसेना को कोयतुर लामहाड़े कहते हैं ।
चूंकि जहकाडुमा हिन्द के नजरों में पास हो गया था और मा बाप के नजरों में खरा उतर गया था । परन्तु इसी समय परिवार के खेत की छोटी नाला में मुंडा बांधने का काम चल रहा था (मुंडा- कोयतुर खेत के आसपास छोटी जलाशय / तालाब को मुंडा कहते हैं) विगत दो तीन सप्ताह से मुंडा का मुख्य मेड़ को बांधने की तीन चार असफल कोशिश की गयी थी परन्तु मेड़ को नाला का झरन पानी फोड़ ही डालता था । इस समस्या के निराकरण हेतु हिन्द के हरन्डुओं ने गांव के सिरहा से कुल/कुंदा पेन को आमन्त्रित किये । कुंदापेन सिरहा के द्वारा बताया कि खेत में से नाला के साथ पेन बहती है इसलिए तोड़ती है यदि मुंडा बनाना ही है तो मानेयतल्ला सेवा अर्जि करना होगा तभी मुंडा बन पायेगा । यह जानकर सातों भाई चिंतित हो उठे यह मुंडा इसलिए जरूरी था क्योंकि अकाल की स्थिति में आसपास के खेतों में सिंचाई नहीं हो पाती थी । नयताम भाई लोग मानेयतल्ला की अपने-अपने सुविधानुसार तलाश किये लेकिन अंततः सफल नहीं हो पाये और मुंडा का मेड़ टूटता ही रहा । एकाएक उसका समाधान उनमें से किसी एक भाई को लमसेना के रुप में जहकाडुमा प्रतीत हुआ । भाईयों में विचार-विमर्श उपरान्त एक दिन लमसेना जहकाडुमा को उसी मुंडा के मेड़ में कुंदापेन को पूजा अर्जि दे दिया गया । उस दिन हिन्द मुंडा में काम करने नहीं आयी थी । शाम हुई हिन्द ने लमसेना की पड़ताल हरन्डुओं से की उन्होने प्रतिदिन की भांति आने की प्रतीक्षा बताकर मामले को टालने की कीट रचना की तब हिन्द लैया को शंका पैदा हुई कहीं उसके भावी पति को वहीं पूजा देकर मुंडा बांध कर तो नहीं आये ??? हिन्द एक गप्पा लेकर शाम की चांदनी रात को उस खेत की पहुंची तो मुंडा को बंधा देखकर उसकी शंका ज्यादा यकीन में बदल गयी क्योंकि मानेयतल्ला की बात उसे पता चल गयी थी। भावावेश हिन्द मेड़ की ओर बढ़ी ही थी कि उसके संगो जिसे जीवनसाथी कहते हैं का हाथ का अंगूठा मिट्टी से बाहर दिखाई दे रही थी। अब हिन्द को विश्वास हो गया था कि उनके भाईयों ने उसके प्रेम की बलि खेत धन धान के लिए कर दी। हिन्द ने निश्चय की कि वह लमसेना जहकाडुमा के बिना नहीं रह सकती तभी वह जहकाडुमा के प्रेम प्रागाढ़ता के वशीभूत उसी मुंडा में गप्पा को तालाब में रखकर वहीं डूब कर प्राण न्यौछावर कर दी ।सुबह हिन्द व जहकाडुमा को नहीं पाकर गाँव में कई प्रकार के संभावित चर्चा गर्म थी।
दूसरे दिन से ही पेन्ड्रावन्ड गाँव में त्राहि-त्राहि मच गयी कहीं कहीं पेन बानाओं की विध्न बाधा के संकेत मिलने लगा । फिर गांवों बुमकाल में सिरहा के द्वारा नार्र पाट पेन को आमन्त्रित कर जांच-पड़ताल की गयी तब पता चला कि हिन्द डूबने के समय माहवारी से थी और उनकी प्राण न्यौछावर करना वेन रुप से पेन रुप में ऊर्जा का परिवर्तन विकट परिवर्तन से होकर गुजरता है। यह ऊर्जा का अनियमित रुप होता है जो कभी-कभी घातक भी होती है। तब पाटपेन ने मार्गदर्शन करते हुए बताया कि जहकाडुमा व हिन्द एक दूसरे से बहुत प्रेम करते थे उनके भाईयों ने उनकी प्रेम की बलि धन धान के लिए कर दी । अतः इन दोनों को हजोरपेन (प्रकृति शक्ति) सशक्त पेन रुप में स्वीकृति देते हुए धन धान की पेन का स्थान देता करता है। इस प्रकार पाटपेन के मार्गदर्शन उपरान्त गायता सिरहा द्वारा उसी मुंडा में पेन्ड्रावन्डीन याया व हासपेन जहकाडुमा की सेवा अर्जि कर मानगुन किया गया और नयताम कुंदा के लोग उन्हें कुंदापेन के रुप में स्वीकृति पेनबानाओं की उपस्थिति में की गयी । तब से लेकर यह पेन्ड्रावन्डीन याया व जहकाडुमा को धन धान हेतु कोयतुर, मरार, कलार, धाकड़ ,कोष्टा समुदाय भी सम्मान के साथ क्षमता अनुसार उनकी सेवा अर्जि करते हैं । सेवा अर्जि के अनुसार कई सेवादार उनकी प्रतिफल को भी प्रात किये हैं / कर रहे हैं । याया पेन्ड्रावन्डीन का स्वभाव चंचलता, चपलता , मासूममियत के साथ ही साथ खतरनाक छल कपट, क्रोधी भी है। जब याया सिरहा पर सवार होती है तब उपरोक्त स्वभाव स्पष्ट परिलक्षित होती है। जिन जिन परिवार में गोन्डीन पेन पेन्ड्रावन्डीन की सेवा अर्जि मानगुन होती है उस परिवार में याया के उपरोक्त स्वभाव स्वतः ही कभी-कभी परिलक्षित होते हैं । पेन्ड्रावन्डीन याया बस्तर के साथ ही साथ सीमावर्ती उड़ीसा में बहुत ही ससम्मान प्रख्यात व चर्चित कोयतुर पेन है। जब याया का दुरुपयोग कपिल व्यक्ति करने की कोशिश करता है तो गोन्डिन याया उसे छल कपट से सजा देती है।
उपरोक्त इतिहास से मेरा विश्लेषण यह है कि गोन्डीन पेन की वेन रुप एक प्रेमी युगल की रही है परन्तु वही वेन रुप चोला पटलने के बाद उस उर्जा का प्रभाव प्रयुक्त प्रयोग अनुसार धन धान की पेन के रुप में प्रकट करती हैं साथ ही उनके भाईयों की अत्याचार वह छल कपट के रुप में आज भी स्पष्टतः दिखाई देती है। इस प्रकार अमर हिन्द पेन्ड्रावन्डीन व पेन जहकाडुमा नयताम कोयतुर समाज ही नहीं वरन अन्य समाज के मानगुन करने वाले के लिए अमर हो गयी हैं और उनकी पेन रुप गप्पा के रुप में पेन्ड्रावन्ड गाँव में पेनठाना के रुप में स्थापित हैं । पेन्ड्रावन्डीन याया व जहकाडुमा की इस कोयतुर प्रेमी जोड़ी को हाटिया लेखक लोग 'झिटकू मिटकी ' बना दिये हैं जैसे कोयतुर याया कली कंकालीन याया को काली कंकाली बना दिये हैं । कोयतुर समाज व लेखकों व पाठकों से निवेदन कि असली इतिहास की जानकारी सभी तक पहुंचाये।
सेवा जोहार
पेन्ड्रावन्डीन याया ना सेवा-सेवा ॥
जहकाडुमा पेन ना नावा सेवा-सेवा ॥
कुटामुदिया बोकड़ाबेड़ा ना सेवा-सेवा ॥
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