प्राकृतिक विज्ञान और कोयापुनेम
#प्राकृतिक_विज्ञान_कोयापुनेम
#विज्ञान_के_चमत्कार
जिस देश में विज्ञान की आविष्कार जो कि प्राकृतिक शक्ति ,पदार्थो की भौतिक, रासायनिक व जैवकीय क्रियाओं के फलस्वरुप परिवर्तन के एक निश्चित नियम के अनुसार सिद्ध होते हैं जिसे सिद्धान्त कहते हैं के कारण हुआ है उसे चमत्कार कहलाया / ठहराया जाता है। उस देश में प्राकृतिक नियम(कोयापुनेम) व सिद्धान्तों को चमत्कार नामक शब्द से अलौकिकता की चादर ओढ़ाकर विज्ञान व चमत्कार(जादू) में भ्रम पैदा कर दी गयी है। उस देश में सुई का आविष्कार कैसे संभव है? ??? विज्ञान का छात्र तो सिद्धान्त नहीं चमत्कार की आशा करता है। यह भ्रम भाषा के द्वारा आशा(चमत्कार) को पोषित एवं आविष्कार (शोध) को शोषित अप्रत्यक्ष रुप से करता है। कितनी चैतन्यता से भाषा का भ्रम जाल फैलाया गया है....???आखिर क्यों? ??
विज्ञान चमत्कार नहीं आविष्कार है। प्राकृतिक विज्ञान(कोयापुनेम ) का सिद्धान्त विज्ञान का आधारभूत ढांचा है। प्राकृतिक सिद्धान्त के विपरीत विज्ञान एक भी प्रयोग सिद्ध नहीं कर सकता है। यदि विज्ञान चमत्कार होता तो पृथ्वी के मूलभूत पंचतत्व माटी जल हवा आकाश व अाग का कृत्रिम निर्माण कर लिया होता यह घटना ही चमत्कार को झूठा प्रमाणित करती।
प्राकृतिक विज्ञान(कोयापुनेम) के नियमों का एक प्रतिशत अंश ही विज्ञान प्राप्त कर पाया है। विज्ञान के कुछ आविष्कार इसलिए असफल हो रहे हैं क्योंकि उक्त आविष्कार से संबंधित प्राकृतिक नियमों का पालन नहीं हो पा रही है। यदि इस पृथ्वी को संरक्षित रखना है तो प्राकृतिक विज्ञान (कोयापुनेम) के सभी मूलभूत नियमों का पालन करना ही होगा अन्यथा प्राकृतिक विज्ञान के मूलभूत नियम से प्राकृतिक शक्ति( हजोरपेन) स्वयं आपदा/महामारी /अतिवृष्टि से नियंत्रित करती है। प्राकृतिक विज्ञान नियम अनुसार "जीवा परो जीवा पिसीहयालता"अर्थात् किसी भी जीव से ही एक जीव की उत्पत्ति होती है और जीव की उत्पत्ति पांच तत्वों की भिन्न भिन्न अंशों में संयुग्मन के साथ भौतिक, रासायनिक व जैविकीय क्रियाओं के फलस्वरुप होती है। यह कोयापुनेम की जीव की उत्पत्ति का सिद्धान्त है। जिसे विज्ञान "#कोयेसरवेट्स" कहती है। यह कोयेसरवेट्स ही प्राक कोशिका होती है। यह प्राक कोशिका कालान्तर में बहुकोशिकीय जीवा का निर्माण करती है। बहुकोशिकीय जीवों से जटिल जीवों का उद्विकास हुआ है। यह जीवन की उत्पत्ति का सार्वभौमिक सिद्धान्त है। लेकिन चमत्कार वाला गपशपशास्त्र में तो अलग ही अप्राकृतिक अलौकिक घटनाओं का हवाला देकर चमत्कार कर दिया गया कि यह छाती के बाल से, यह सिर से, वह जंघा से, वह भुजा से, वह पैर से ...आदि आदि । यह गपशप अतार्किक, अप्राकृतिक , प्रकृति नियम के विपरीत है। इसलिए प्राकृतिक विज्ञान (कोयापुनेम ) व विज्ञान को सीखिए पढ़िए विश्लेषण कीजिए और इस पृथ्वी की गोला को संरक्षित करने में सहयोग करते हुए मानवीय समुदाय ही नहीं वरन संपूर्ण गोला के जीव जगत के साथ ही साथ प्रकृति शक्ति के मूल तत्वों को बनाए रखने में योगदान दीजिए । चमत्कार के चक्कर में दुनिया में अंधकार (विनाश) मत फैलाइए।।
हजोरपेन ता सेवा-सेवा ॥
✍🏿 माखन रावेन होड़ी
लंकाकोट कोयामुरी दीप॥
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