संभू हजोर नरका

*शंभू माई/ हजोर नरका( माघ पूर्णिमा के तेरहवें दिन)*


जाने क्या है? ??

शंभू सेक नरका पण्डुम को " संभू जागने का रात या नरका " अर्थात् संभू जागरण की रात को कहा जाता है। यह त्यौहार माघ पूर्णिमा से तेरह दिन बाद मनाया जाता है। कोया वंशीय गोंड समुदाय के गण्डजीव इस पर्व को इसलिये मनाते हैं कि इस दिन पंच खण्ड धरती " गण्डोदीप" के अधिपति संभू सेक ने अपने गण्डजीवों को मौत के मुंह से बचाने हेतु जो विष प्राशण किया था, उसे पचाकर वे होश में आ गये थे और उनके गण्डजीवों में खुशी ला माहौल छा गया था ,इसलिए इस पर्व को वे संभू जागरण जतरा कहते हैं ।
इस बारे में कोया वंशीय गोण्ड समुदाय में ऐसा मान्यता है कि प्राचीन काल में सतपुड़ा के पेनकमेढ़ी कोट के गणप्रमुख कुलीतारा के पुत्र " कोसोडुम " ने अपने तपोबल से इस गण्डोदीप के सभी प्राणी मात्रों का कल्याण साध्य करने वाला " मूंदमून्दशूल हर्रि "त्रेगुण्यशूल मार्ग प्रतिपादन किया । अपने कार्य से वे गण्डोदीप के अधिपति बने । इसलिए गण्डोदीप कर गण्डजीवों ने उसे संभूसेक उपाधि से विभूषित किया। इस गण्डोदीप में एक के पश्चात् दूसरा ऐसे कुल ८८वें शंभूसेकों ने अपनी अधिसत्ता चलाई । संभूसेक को कोया वंशीय गोण्ड समुदाय के लो संभू मादाव भी कहते हैं । संभू माधव याने पंच भूमि का पिता ।
सतपुड़ा यानि सत्ता का पुड़ा या केन्द्र के पेनकमेढ़ी (पंचमढ़ी ) से इस गण्डोदीप पर अपनी अधिसत्ता चलानेवाले सभी संभूसेक अपनी अर्धांगनियों के जोड़ी से ही जाने जाते हैं ।शंभू मूला की प्रथम जोड़ी है, संभू गवरा की मध्य की जोड़ी और संभू गिरजा की अंतिम जोड़ी है। संभू गवरा के कार्यकाल में इस गण्डोदीप के कोया वंशीय गण्डजीवों को सगावेन समुदाय में संरचित कर गोण्डी पुनेम मूल्य के एक सूत्र में अनुबंधित करने का कार्य रुपोलंग पहांदी पारी कुपार लिंगो ने किया,  जिसके कारण सभी गण्डजीव अमन चैन से अपना जीवन निर्वाह किया करते थे। संभू गवरा के पश्चात इस गण्डोदीप के संभू बेला, संभू मुला, संभू तुलसा, संभू उमा, शंभू गिरजा, संभू सति,संभू पार्वती आदि 88 संभू हुये, जिनमें संभू पार्वती की अंतिम जोड़ी है। उनकी जीवन काल में गोण्डी पुनेम का सूत्र संभालने वाले अनेक लिंगो हो चुके,  जिनमें कुपार लिंगो,मूठा लिंगो, रायलिंगो,भूरालिंगों, महारू लिंगो, भिमा लिंगो, ओसुर लिंगो, राहुड़ लिंगो ,दवगड़ लिंगो, धन्नात्री लिंगो, गन्नात्रयी लिंगो, दानुर लिंगो, पोया लिंगो, मिण्ड लिंगो, भुइला लिंगो, मुण्ड लिंगो, भुईंज लिंगो, भार लिंगों, सुर लिंगो, कोया लिंगो, कोर लिंगो, मुर लिंगो आदि। संभू पार्वती के जीवनकाल में कोया लिंगो गोण्डी पुनेम के मुठवा थे। उन्ही के जमाने में इद गण्डोदीप में आशिया माइनेर के आर्य टोलियों का आगमन हुआ ।

माखन रावेन होड़ी
लंकाकोट कोयामुरी दीप

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