रावपेन

महामानव "रावेन " का
"विकेन्द्रीकृत नार इकोनॉमी सिस्टम "

रावेन  के विकेन्द्रीकृत  नार गढ़  किला माॅडल में  उन्होंने  लालच वंश स्वर्ण लंका  को तो ध्वस्त कर  दिया  परन्तु  आक्रमणकारी  आर्यों को यह पता नहीं  था कि  कुयवा राष्ट्र पूर्णतः  "आत्मनिर्भर नार इकोनॉमी" पर आधारित विकेन्द्रीकृत  सिस्टम  था . . .  रावेन  की स्वर्ण  लंका दसों  दिशाओं से राव पेन  सिस्टम  से   आटोमैटिक लाॅक्ड थीं. . . .  यह सिर्फ  राज परिवार  या गायता परिवार के  डीएनए धारी  व्यक्ति  से ही  खुल सकती थी. . . .  इसलिए  उन्होंने वाकपटुता व छलकपट  से विभिषण  को " दलाल" बनाकर इस " राव पेन  तंत्र " को धवस्त किया  . . . . . इसलिए वे अपने  धर्मग्रंथों में इन दस रावों के शहादत को वे कोरी कल्पित दस सिरों को  काटने की  कल्पना  करते हुए  दस सिरों के  रावण की  रचना  कर बैठे . . . . . .  परन्तु  मूलनिवासीयो के लिए  यह अच्छी खबर यह थी कि  चूँकि  रावेन  का सम्राज्य  विकेन्द्रीकृत थी .अर्थात  हर गांव  आत्मनिर्भर किले की तरह  थे  . . अतः  आर्यों  ने दुबारा  सीधे  हमला करने की  रणनीति  को बदलकर  हम मूलनिवासीयो में  से ही निरन्तर   विभिषण तैयार  कर धार्मिक  सांस्कृतिक  हमले  करने रणनीति पर  बल दिया  . इसके लिए  हम मूलनिवासीयो में जातिवाद का बीज बोकर.हमारी एकता को विखंडित किया . . .हमारी मूल पहचान को लगातार नष्ट करते गऐ . जो अब भी जारी है. . . पर महामानव  रावेन  का यह सिस्टम  अब भी  आंशिक रूप से  बचा हुआ है. . . . मूलनिवासी बहुत गावों में  तो ऐ पूर्णतः  सुरक्षित है. . .  इन गांवों में  आज भी ताले लगाने कि जरूरत नहीं पड़ती,  चोरी की घटनाएं  न्यून है,  भ्रुण हत्या जैसे कुरितियो  का नामोनिशान  नहीं है,  दहेज प्रथा बिल्कुल  प्रचलित  नहीं है. . . .आदि आदि। अब नई  पीढ़ी को  रावेन  और उसके  सिस्टम  को समझने के लिए  किसी "रामायण " जैसे  आर्यन  धर्मग्रंथों  पर ही निर्भर  न रहकर उन्हें  मूलनिवासीयो के  प्राकृतिक  जीवन शैली  का  भी अध्ययन  करना चाहिए,  संस्कृत  जैसे  भाषाओं में  रचित  मंत्रों के  विश्लेषण के  अतिरिक्त  कन्नड़,  तमिल,  तेलुगु,  गोण्डी  जैसे  भाषाओं में प्रचलित  पेन पाटाओ को भी अध्ययन  करना  होगा. . . .  ऐसे  हमारे  असंख्य  लंका  आज भी  सुरक्षित है. . .  हमे बस उन्हें  संरक्षित करने की  जरूरत है. . प्रस्तुत चित्र  रावेन पेन सिस्टम  को मरमिग  विवाह  संस्कार  में सदियों से  प्रयुक्त  किया जाता है. . . .  रावेन शब्द  = 🐂  बैलगाड़ी  चलने  का मार्ग  के लिए  भी गोण्डी में  प्रयुक्त  होता है. . .  अर्थात ऐसा  महामानव  जो   दुनिया  🌍  को  सत् मार्ग पर चलने  को प्रेरित करता  हो . . . . .   गोण्डी में  " ऐर्रा "= गुप्त  रास्ता जो मूल में  ले      जाता हो ,
               "हर्री "=  निश्चित  जगह  ले जाने  वाली  मार्ग 
  इसलिए  आर्यन  "दश+हरी " या " दस+ऐर्रा" का त्योहार बड़े  धुम धाम से मनाते हैं  क्योंकि  इस दिन  लंका का  दस रावों  से  लाॅक्ड  दस  दिशाओं में स्थापित "गुप्त  मार्ग " / रास्ते  का सिस्टम  ध्वस्त हो गया था.   जिससे शान्ति  प्रिय  पुरे  मूलनिवासी समुदायों  पर गहन संकट  आ गया था. . . इसी कारण बस्तर जैसे मूलनिवासी बहुत क्षेत्रों में आज भी रावेन दहन की जगह रावेन सेवा! प्रचलित है  . आज हम सबको  एकजुट होकर  अपने  अदंर के  विभिषणो  को समाप्त कर  रावेन  के प्रकृति  आधारित  वैज्ञानिक सिस्टम  को पुनः  प्रस्थापित करना  होगा. . . . . . . . (क्रमशः ). .
       जय सेवा! प्रकृति सेवा!

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