जवाब
भारत में आरक्षण का इतिहास ?.क्योंकि इस देश की शुरूआती/वैदिक ग्रंथों में ही वर्ण व्यवस्था वर्णित है जो किसी वर्ग को शिक्षा में 100% की आरक्षण देता है तो, किसी को राजकीय सत्ता में, तो किसी को धन रखने में,तो किसी को शोषित रहने में।.ये आरक्षण बरकरार रहे इसके लिए भारत का पहला संविधान तैयार किया गया था जिनको " लॉ ऑफ़ मनु" के नाम से जाना जाता था/है।.इन सबके बावजूद अगर कोई शूद्र राजा राम चंद्र जी के समय में शम्बुक बनकर पढ़ने की धृष्टता करता है तो भगवन जी द्वारा उनका सर कलम कर दिया जाता है, आज के तालिबानियों और ISIS की तरह।.कोई शूद्र अगर एकलव्य बन जाता है तो अर्जुन की श्रेष्ठता कायम रखने के लिए गुरु द्रोण उनका अंगूठा मांग लेते हैं। औरअगर कोई शूद्र कर्ण बनकर श्रेष्ठ बन जाता है तो उनको श्राप देकर मिटा दिया जाता है।.जो लोग ये समझते हैं कि आरक्षण कोई गरीबी उन्मूलन की योजना है तो वो बिलकुल गलत हैं।.ये तो सिर्फ हज़ारों सालों से हुए शोषणों के कारण आज दबे कुचलों के नाम से जाने जाने वालों को बेईमानी से बचाने,उनको उनका संसाधनों और सत्ता में उनकी जनसँख्या के हिसाब से प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की योजना है।.ये दलील की ऐसा तो हमारे पूर्वजों ने किया था आज नहीं हो रहा है ये भी गलत है।आज भी वही हो रहा है जो हज़ारों सालों पहले हुआ था,सिर्फ उनका स्वरुप बदल गया है।आज ये काम शिक्षा और स्वास्थ के निजीकरण के नाम पर, "नो सूटेबल कैंडिडेट फाउंड" तथा भूमि अधिग्रहण जैसे बिल केनाम पर हो रहा है।.जब सबों को एक समान शिक्षा ही नहीं दी जायेगी यानि की रेस में दौर के शुरुआत की लाइन ही अलग-अलग होगी (गांव केसरकारी स्कूलों की शिक्षा vs शहरों में कान्वेंट स्कूलों में शिक्षा), तो फिर एंट्रेंस में सभी लोगों को एक सामान प्रश्न कैसे देकर उनकी विद्वता का निर्णय किया जा सकता ?.तभी तो स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था-यदि स्वभाव में समता न भी हो , तो भी सब को समान सुविधा मिलनी चाहिए । फिर यदि किसी को अधिक तथा किसी को अधिक सुविधा देनी हो , तो बलवान की अपेक्षा दुर्बल को अधिक सुविधा प्रदान करना आवश्यक है । अर्थात चांडाल के लिए शिक्षा की जितनी आवश्यकता है , उतनी ब्राह्मण के लिए नहीं । ( नया भारत गढ़ो , पृ . ३८ ).रेस में अकेले दौड़ कर अपने आपको ज्यादा प्रतिभाशाली नहीं घोषित किया जा सकता।सबों को एक तरह की ट्रेनिंग की व्यवस्था करो और फिर दौर लगाकर देखें की कौन सक्षम और कौन अक्षम है ?.ये अक्सर मेडिकल,इंजीनियरिंग और अन्य संस्थानों में देखा जाता है कि जब लाइन सामान कर दी जाती है तो ये शोषित लोग सबों को आउटपर्फोर्म कर टॉप करते हैं।.सरकारी संस्थानों में तो आरक्षित वर्ग के प्रवेश की एक निम्न सीमा निर्धारित होती है, जरा निजी टेक्निकल संस्थानों में दाखिले के बारे में सोचिये जहाँ से सच्चे मायने में गधे पैदा किये जाते हैं, क्योंकि यहाँ पर अमिरजादों के नालायक और अय्याश औलाद सिर्फ पैसों के बल पर डिग्री लेकर इस राष्ट्र को बर्बाद कर रहे है।.किनके पास हैं इतने धन???कौन उठा रहा है इस आरक्षण का मजा?क्यों नहीं बंद कर देना चाहिए इन संस्थानों को??क्यों नहीं तुरंत बंद होना चाहिए ये आरक्षण ???
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें